फैल रहा है धुंआ ,अफ़वाहों का इस शहर में ,
नफरत की ये आग, दिल मे लगाई किसने है।
झुलस रहा है तन मन, हर शख्श का इस आग में,
दे हवा ,चिंगारी को शोला रूप ,भड़काई किसने है।
उठा रखे है जाहिलो ने ,पत्थर अपने हाथों में ,
बर्बादी का ये सबक ,उन्हें सिखाई किसने है।
सच क्या है, क्या है झूठ, खबर आई कहाँ से है,
इनसे बेख़बर , खबर को अफवाह बनाई किसने है।
या खुदा रहम कर , उन नासमझ बन्दों पर ।
फ़र्ज़ की राह से लोगो को ,भटकाई जिसने है ।
बी के दीक्षित " बृज"
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