हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चन्द मास अभी इन्तज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धरे
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
रचनाकार- रामधारीसिंह 'दिनकर', - "रचना अमर होती है" पता नहीं किस परिपेक्ष में लिखी होगी, पर दिनकर जी की कविता आज उतनी ही प्रासंगिक
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चन्द मास अभी इन्तज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धरे
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
रचनाकार- रामधारीसिंह 'दिनकर', - "रचना अमर होती है" पता नहीं किस परिपेक्ष में लिखी होगी, पर दिनकर जी की कविता आज उतनी ही प्रासंगिक
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