चलो गांव चलें
यहां से भाग चलें
बड़ी उम्मीद से यहां आया था
श्रम सीकर बहाकर
कुछ कमाया था
महामारी ने
बड़ी क्रूरता से
वह कमाई छीनकर
खैरात के पथ
पर ढकेल दिया
आज दिन में
भूख की छटपटाहट से
ही सो गया
बेटी चुनिया भी
रात की ही खाई है
दिन भर अपना पेट सहलाई है
अब दिन- रात
कठिन से कठिनतर
होता जाएगा
पसीना बहाकर भी
अब दो रोटी नहीं मिल पाएगा
चलो गांव चलें
भाग चलें
यहां हर तरफ़ ख़तरा है
बाहर पुलिस का कड़ा पहरा है
इस पूरे शहर में
यमराज का ही साम्राज्य है
यहां से सुरक्षित
जीवन को निकाल पाना
काल के मुंह से बाहर आना है
चलो गांव चलें
यहां से भाग चलें ।।
रचनाकार-
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
Go east or west ,my gaav is the best,chahe rukhi_sukhi khaye hum,gaav ki bhumi se juda na honge hum.
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