मैं निर्बंध हूं
अपनी कविता
का ही एक
छंद हूं
बंध कर कभी न
रह सका हूं
कल्पना के
पंख लगाकर
उड़ जाना
चाहता हूं
अनंत यात्रा
पर निकला हूं
अब मुझे कोई
तनिक भी न
रोक सकता है
वक्त कम है
लक्ष्य सुदूर है
खेचरी शक्तियां
देह के कालनेमी से
मिलकर माया
रच दी हैं
पूरी ताकत से
मेरी इस यात्रा को
असफल करना
चाहती हैं
प्रिय से मिलने के
इस मार्ग पर
रुकावटें ही
रुकावटें हैं
लेकिन मैं
कृतसंकल्पित हूं
हालांकि मैं जानता हूं
अच्छी तरह से
इस बंधन
को पहचानता हूं
इसे तोड़ पाना
बमुश्किल है
लेकिन इसे
तोड़ते-तोड़ते
मैं अभ्यस्त
हो गया हूं
प्रिय से
मिलने के लिए
निकल पड़ा हूं
मैं निर्बंध हूं!
अपनी ही
कविता का
एक छंद हूं।
डॉ सम्पूर्णानंद मिश्र स्नातकोत्तर शिक्षक हिंदी केन्द्रीय विद्यालय इफको फूलपुर इलाहाबाद( प्रयागराज)
अच्छा लिखा है सर।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है श्रीमान।
ReplyDeleteउत्तम व प्रभावकारी शब्दचित्र
ReplyDelete