सारे रंजोगम
भूल जाओ
सबको गले
लगा जाओ
जीवन कौड़ी के
भाव मत
बेच जाओ
कुछ तो अच्छा
कर जाओ
सारे गिले-शिकवे
का आसव
स्वयं पी जाओ
कुछ दूसरे के लिए भी
तो थोड़ा जी जाओ
फिर ऐसा उद्यान
कब मिलेगा
अच्छे कर्मों का
प्रसून कब खिलेगा
दर्द तो सब देने
के लिए तैयार हैं
तुम दवा तो
बन जाओ
कंटकों के पथ पर
चलकर ही
उसके दर्द का
आस्वादन करके ही
फूल फूल हो गया
कांटा कांटा रह गया
महादेव बनने के लिए
गरल पीना तो
सीख जाओ
अपना बनाने के लिए
सारे रंजोगम तो भूल जाओ !
रचनाकार- डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र जी की अन्य कविताएं पढ़ें
भूल जाओ
सबको गले
लगा जाओ
जीवन कौड़ी के
भाव मत
बेच जाओ
कुछ तो अच्छा
कर जाओ
सारे गिले-शिकवे
का आसव
स्वयं पी जाओ
कुछ दूसरे के लिए भी
तो थोड़ा जी जाओ
फिर ऐसा उद्यान
कब मिलेगा
अच्छे कर्मों का
प्रसून कब खिलेगा
दर्द तो सब देने
के लिए तैयार हैं
तुम दवा तो
बन जाओ
कंटकों के पथ पर
चलकर ही
उसके दर्द का
आस्वादन करके ही
फूल फूल हो गया
कांटा कांटा रह गया
महादेव बनने के लिए
गरल पीना तो
सीख जाओ
अपना बनाने के लिए
सारे रंजोगम तो भूल जाओ !
रचनाकार- डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र जी की अन्य कविताएं पढ़ें
Sunder🙏
ReplyDeleteGood poem
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