मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि मैं बड़े बुजुर्गो
का ध्यान रखता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि प्रात:काल
जगता हूं
माता-पिता का
चरण स्पर्श करता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि पूजा-पाठ
करता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि मैं निरंतर
दीन दुखियों की
मदद करता रहता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि
हर बहन बेटी को
अपनी बहन- बेटी
समझता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि भूख से छटपटाए
पेटों को सहलाते हुए
मासूमों का उदर- पोषण
करता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि सीमा पर
लड़ते हुए देश के लिए
अपने प्राणों को न्यौछावर
करने वाले सिपाही की
विधवा के
निलय नि:सृत आंसुओं
को पोंछता हूं
तुम संस्कारी हो
क्योंकि
बड़े बुजुर्गो का
दिल दुखाते हो
तुम संस्कारी हो
क्योंकि
तुम
अपने माता-पिता
की आज्ञा की निरंतर
अवहेलना करते हो
तुम संस्कारी हो
क्योंकि तुम्हारी ईश्वर में
कोई आस्था नहीं है
तुम संस्कारी हो
क्योंकि
दीन दुखियों के अश्रु का
व्यापार करते हो
तुम संस्कारी हो
क्योंकि हर बहन- बेटी पर
तुम्हारी वासनात्मक दृष्टि है
तुम संस्कारी हो
क्योंकि
भूख से छटपटाते हुए
मासूमों की रोटी
छीन लेते हो
तुम संस्कारी हो
क्योंकि
किसी मां बहन
बेटी की मांग में
पड़ी सिंदुर को
पोंछ देने के बड़े
विदग्ध खिलाड़ी हो !
आप मेरे इस असंस्कार पर
बहुत चिंतित हैं !
कि यह अपने इस रूप को
क्यों नहीं उतार फेंकता
लेकिन
संस्कार के इस ताने-बाने
और ढंग पर चलने
का मैं
अब निरंतरआदी हूं ।।
रचनाकार - डॉ०सम्पूर्णानंद मिश्र स्नातकोत्तर शिक्षक हिंदी केन्द्रीय विद्यालय इफको फूलपुर इलाहाबाद ( प्रयागराज) की अन्य कवितायेँ पढ़ें
क्योंकि मैं बड़े बुजुर्गो
का ध्यान रखता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि प्रात:काल
जगता हूं
माता-पिता का
चरण स्पर्श करता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि पूजा-पाठ
करता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि मैं निरंतर
दीन दुखियों की
मदद करता रहता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि
हर बहन बेटी को
अपनी बहन- बेटी
समझता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि भूख से छटपटाए
पेटों को सहलाते हुए
मासूमों का उदर- पोषण
करता हूं
मैं असंस्कारी हूं
क्योंकि सीमा पर
लड़ते हुए देश के लिए
अपने प्राणों को न्यौछावर
करने वाले सिपाही की
विधवा के
निलय नि:सृत आंसुओं
को पोंछता हूं
तुम संस्कारी हो
क्योंकि
बड़े बुजुर्गो का
दिल दुखाते हो
तुम संस्कारी हो
क्योंकि
तुम
अपने माता-पिता
की आज्ञा की निरंतर
अवहेलना करते हो
तुम संस्कारी हो
क्योंकि तुम्हारी ईश्वर में
कोई आस्था नहीं है
तुम संस्कारी हो
क्योंकि
दीन दुखियों के अश्रु का
व्यापार करते हो
तुम संस्कारी हो
क्योंकि हर बहन- बेटी पर
तुम्हारी वासनात्मक दृष्टि है
तुम संस्कारी हो
क्योंकि
भूख से छटपटाते हुए
मासूमों की रोटी
छीन लेते हो
तुम संस्कारी हो
क्योंकि
किसी मां बहन
बेटी की मांग में
पड़ी सिंदुर को
पोंछ देने के बड़े
विदग्ध खिलाड़ी हो !
आप मेरे इस असंस्कार पर
बहुत चिंतित हैं !
कि यह अपने इस रूप को
क्यों नहीं उतार फेंकता
लेकिन
संस्कार के इस ताने-बाने
और ढंग पर चलने
का मैं
अब निरंतरआदी हूं ।।
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