चुपचाप प्रशांत
बहता जाता है
न किसी से
कोई टकराहट
न कोई भेदभाव
सबको संस्पर्श
करते हुए
चिर प्रस्तरों को
नमन करते हुए
अपना पथ
शिनाख्त करते हुए
कोई मनोमालिन्य नहीं
स्वयं अपना रास्ता
बनाते हुए
अपने अहं को
विगलित करते हुए
अपने ही धुन में
रमे हुए
बिना थमे हुए
निरंतर कालजयी
अवधूत की तरह
आठों याम मस्त
बहता रहता है
शीर्ष पर रहने की
न कोई प्रतियोगिता
न ही विजेता बनने
की कोई स्पृहा!
निलय नि:सृत आंसुओं का
प्रक्षालन करते हुए
निरंतर बहता रहता है
अगर जीवन में बह सको
तो नीर जैसा बहो।
बिल्कुल सर आप के जैसे ज्ञान का सागर पर बिल्कुल शांत।
ReplyDeleteसादर प्रणाम
जी सर। बिल्कुल सही कहा आपने।👍
ReplyDeleteजी सर। बिल्कुल सही कहा आपने।👍
ReplyDeleteजी सर। बिल्कुल सही कहा आपने।👍
ReplyDeleteExactly sir
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