आज संबंध
बड़ा नाज़ुक है
इसे बचाना
बेहद मुश्किल है
कब कौन कहां
आहत हो जाता है
इसका पता लगाना
मां सीता को लंका से
खोज निकालना है
आज़ एक आदमी के भीतर
कई आदमी मौजूद हैं
उसके मस्तिष्क में
विचारों के
कई गहरे कुएं है
कुओं में भी एक कुआं है
वहां से उसके
विचारों के जल को निकालना
कंस को कृष्ण बनाने जैसा है
संबंधों के बाजार में
आदमी की भावनाओं
की कोई कीमत नहीं
बर्बरता के इस युग में
आदमी इतना
विषाक्त हो गया है
कि अब अहि- दंश
से किसी को कोई खतरा नहीं
लेकिन नर नामक भेड़ियों से
आज़ नर ही
लहूलुहान हो रहा है
रात्रि में इस विषैले जीव से ही
आदमी भय- व्याप्ति
का शिकार हो रहा है ।।
संपूर्णानंद मिश्र जी की अन्य कविताएं पढ़ें
बड़ा नाज़ुक है
इसे बचाना
बेहद मुश्किल है
कब कौन कहां
आहत हो जाता है
इसका पता लगाना
मां सीता को लंका से
खोज निकालना है
आज़ एक आदमी के भीतर
कई आदमी मौजूद हैं
उसके मस्तिष्क में
विचारों के
कई गहरे कुएं है
कुओं में भी एक कुआं है
वहां से उसके
विचारों के जल को निकालना
कंस को कृष्ण बनाने जैसा है
संबंधों के बाजार में
आदमी की भावनाओं
की कोई कीमत नहीं
बर्बरता के इस युग में
आदमी इतना
विषाक्त हो गया है
कि अब अहि- दंश
से किसी को कोई खतरा नहीं
लेकिन नर नामक भेड़ियों से
आज़ नर ही
लहूलुहान हो रहा है
रात्रि में इस विषैले जीव से ही
आदमी भय- व्याप्ति
का शिकार हो रहा है ।।
संपूर्णानंद मिश्र जी की अन्य कविताएं पढ़ें
👍 सही कहा है।
ReplyDelete👍 सही कहा है।
ReplyDeleteAbsolutely right
ReplyDeleteसादर नमन गुरुदेव । अतिउत्तम
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखा है। 👍
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