मृत्यु शाश्र्वत सत्य है
इसके रंग रूप को
जो पहचान गया
जीवन जीना
सच्चे अर्थों में
वह
जान गया
फिर
हृदय में जमीं
वैमनस्य के दरख्तों
की गहरी जड़ों
को अपने विवेक
की कुल्हाड़ी से
काट देता है
सारे गिले-शिकवे
की खाई
को पूरी तरह
पाट देता है
छल, कपट,दंभ
का लिबास
उतार फेंकता है
धुर विरोधियों को भी
गले लगा लेता है
फिर सारा संसार
उसके लिए मदिरालय
हो जाता है
यहां न कोई
धर्म का झगड़ा
न जर और जोरु
का लफड़ा
न पंडित और उलेमा
का कोई बखेड़ा!
सब
यहां मस्ती में
साम्प्रदायिक सौहार्द
की हाला का
रसपान करते हैं
और वास्तविकत
रूप में
जीवन जीना
सीख जाते हैं ।।
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र स्नातकोत्तर शिक्षक हिंदी केन्द्रीय विद्यालय इफको फूलपुर इलाहाबाद ( प्रयागराज)
इसके रंग रूप को
जो पहचान गया
जीवन जीना
सच्चे अर्थों में
वह
जान गया
फिर
हृदय में जमीं
वैमनस्य के दरख्तों
की गहरी जड़ों
को अपने विवेक
की कुल्हाड़ी से
काट देता है
सारे गिले-शिकवे
की खाई
को पूरी तरह
पाट देता है
छल, कपट,दंभ
का लिबास
उतार फेंकता है
धुर विरोधियों को भी
गले लगा लेता है
फिर सारा संसार
उसके लिए मदिरालय
हो जाता है
यहां न कोई
धर्म का झगड़ा
न जर और जोरु
का लफड़ा
न पंडित और उलेमा
का कोई बखेड़ा!
सब
यहां मस्ती में
साम्प्रदायिक सौहार्द
की हाला का
रसपान करते हैं
और वास्तविकत
रूप में
जीवन जीना
सीख जाते हैं ।।
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र स्नातकोत्तर शिक्षक हिंदी केन्द्रीय विद्यालय इफको फूलपुर इलाहाबाद ( प्रयागराज)
Very good sir
ReplyDeleteसच ही है पर कठोर और.कडवा है।
ReplyDeleteVery nice poem sir
ReplyDeleteVery nice sir
ReplyDeleteVery true sir
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