तुम कहां चली गयी हो
लौटकर कर आ जाओ मां
मैं अब तुम्हें तंग नहीं करुंगी
नित तुम्हारे संग रहूंगी
रुखा सूखा जो खिलाओगी
सहर्ष में खा लूंगी
जब तुम बीमार पड़ोगी
सारा काम मैं कर लूंगी
बासन धुल लूंगी,
खाना पका दूंगी
तुम्हें समय-समय पर
दवा खिला दूंगी
खुद पढूंगी छोटी को भी पढ़ाऊंगी
उसे नहलाकर, तैयार कर
विद्यालय भी पहुंचाऊंगी
तुम कहां चली गई हो मां
मैं अभी तेरह साल की हूं
दुनियादारी नहीं
सीख पायी हूं मां
कौन अब सिखाएगा?
ममता के आंचल से
कौन मेरा आंसू पोंछ पायेगा ?
तुम जैसी कोई नहीं मां
तुम कहां चली गयी हो!
लौट आओ मां !
तूम मुझे जितना डांटना चाहती हो
डांट लेना, मार लेना
मैं सब सह लूंगी
किसी भी हाल में मैं रह लूंगी
लेकिन तुम लौट आओ मां
तुम रहती थी तो
भित्तियां भी बोलती थी
आज पूरे घर में सन्नाटा पसरा है
सब हैं, लेकिन तुम नहीं हो मां
तुम्हारे होने का
एक अलग ही
अर्थ होता था
आज सब व्यर्थ लगता है
तुम बिन सब सूना
अब मेरी इस पीड़ा को
पत्थर भी सह नहीं पा रहा है
चीख चीखकर ढूंढ रहा है
तुम लौट आओ मां
कहां चली गई हो !
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र जी की अन्य कविताएं पढ़ें
लौटकर कर आ जाओ मां
मैं अब तुम्हें तंग नहीं करुंगी
नित तुम्हारे संग रहूंगी
रुखा सूखा जो खिलाओगी
सहर्ष में खा लूंगी
जब तुम बीमार पड़ोगी
सारा काम मैं कर लूंगी
बासन धुल लूंगी,
खाना पका दूंगी
तुम्हें समय-समय पर
दवा खिला दूंगी
खुद पढूंगी छोटी को भी पढ़ाऊंगी
उसे नहलाकर, तैयार कर
विद्यालय भी पहुंचाऊंगी
तुम कहां चली गई हो मां
मैं अभी तेरह साल की हूं
दुनियादारी नहीं
सीख पायी हूं मां
कौन अब सिखाएगा?
ममता के आंचल से
कौन मेरा आंसू पोंछ पायेगा ?
तुम जैसी कोई नहीं मां
तुम कहां चली गयी हो!
लौट आओ मां !
तूम मुझे जितना डांटना चाहती हो
डांट लेना, मार लेना
मैं सब सह लूंगी
किसी भी हाल में मैं रह लूंगी
लेकिन तुम लौट आओ मां
तुम रहती थी तो
भित्तियां भी बोलती थी
आज पूरे घर में सन्नाटा पसरा है
सब हैं, लेकिन तुम नहीं हो मां
तुम्हारे होने का
एक अलग ही
अर्थ होता था
आज सब व्यर्थ लगता है
तुम बिन सब सूना
अब मेरी इस पीड़ा को
पत्थर भी सह नहीं पा रहा है
चीख चीखकर ढूंढ रहा है
तुम लौट आओ मां
कहां चली गई हो !
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र जी की अन्य कविताएं पढ़ें
बड़ी ही मार्मिक कविता है सर, दिल को छूने वाली। सम्पूर्णानंद जी शुरू से ही बड़े विद्वान, प्रतिभाशाली और सज्जन व्यक्ति रहे हैं। ईश्वर उन्हें खूब तरक्की दें।उन्हें सपरिवार सुखी रखें।
ReplyDeleteबड़ी ही मार्मिक कविता है सर, दिल को छूने वाली। सम्पूर्णानंद जी शुरू से ही बड़े विद्वान, प्रतिभाशाली और सज्जन व्यक्ति रहे हैं। ईश्वर उन्हें खूब तरक्की दें।उन्हें सपरिवार सुखी रखें।
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteHeart touching poem
ReplyDeleteअति उत्तम👌👌
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