हमने जीवन में करने की ही एकमात्र दिशा जानी है ,
न - करने की हमने कोई दिशा नहीं जानी ।
तो हमें पता ही नहीं !
जब हम कहते हैं किसी से प्रेम की बात ,
तो भी हम उससे कहते हैं कि मैं प्रेम करता हूं !
हालांकि जिनको भी कभी प्रेम का अनुभव हुआ होगा ,
उन्हें पता है कि प्रेम किया नहीं जाता ।
वह क्रिया नहीं है ।
प्रेम कर ही नहीं सकते । प्रेम घटता है ।
प्रेम होता है , किया नहीं जा सकता ।
लेकिन हम तो प्रेम को भी करने की भाषा में सोचते हैं !
हमारी करने की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि हम जो भी सोच सकते हैं ,
वह करने की भाषा में ही सोच सकते हैं ।
हम तो यह भी कहते हुए सुने जाते हैं कि श्वास लेते हैं ।
हालांकि हमने कभी श्वास नहीं ली अपने जीवन में अभी तक और न कभी ले सकते हैं ।
श्वास चलती है ।
कुछ न करना ,
कुछ भी न करना,
बस होना
होने का आनंद ।
न - करने की हमने कोई दिशा नहीं जानी ।
तो हमें पता ही नहीं !
जब हम कहते हैं किसी से प्रेम की बात ,
तो भी हम उससे कहते हैं कि मैं प्रेम करता हूं !
हालांकि जिनको भी कभी प्रेम का अनुभव हुआ होगा ,
उन्हें पता है कि प्रेम किया नहीं जाता ।
वह क्रिया नहीं है ।
प्रेम कर ही नहीं सकते । प्रेम घटता है ।
प्रेम होता है , किया नहीं जा सकता ।
लेकिन हम तो प्रेम को भी करने की भाषा में सोचते हैं !
हमारी करने की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि हम जो भी सोच सकते हैं ,
वह करने की भाषा में ही सोच सकते हैं ।
हम तो यह भी कहते हुए सुने जाते हैं कि श्वास लेते हैं ।
हालांकि हमने कभी श्वास नहीं ली अपने जीवन में अभी तक और न कभी ले सकते हैं ।
श्वास चलती है ।
कुछ न करना ,
कुछ भी न करना,
बस होना
होने का आनंद ।
nice lines sir☺������
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