हमने जीवन में करने की ही एकमात्र दिशा जानी है ,   न - करने की हमने कोई दिशा नहीं जानी ।   तो हमें पता ही नहीं !   जब हम कहते हैं किसी से प्रेम की बात ,   तो भी हम उससे कहते हैं कि मैं प्रेम करता हूं !   हालांकि जिनको भी कभी प्रेम का अनुभव हुआ होगा ,   उन्हें पता है कि प्रेम किया नहीं जाता ।   वह क्रिया नहीं है ।   प्रेम कर ही नहीं सकते । प्रेम घटता है ।   प्रेम होता है , किया नहीं जा सकता ।   लेकिन हम तो प्रेम को भी करने की भाषा में सोचते हैं !   हमारी करने की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि हम जो भी सोच सकते हैं ,   वह करने की भाषा में ही सोच सकते हैं ।   हम तो यह भी कहते हुए सुने जाते हैं कि श्वास लेते हैं ।   हालांकि हमने कभी श्वास नहीं ली अपने जीवन में अभी तक और न कभी ले सकते हैं ।   श्वास चलती है ।   कुछ न करना ,  कुछ भी न करना,   बस होना  होने का आनंद ।