आदमी कहता है
इतनी जमीन का मालिक हूँ!
जमीन हंसती होगी नासमझी पर
कहती होगी !
तुम जैसे कितने आए और चले गए
जिसने चाहा मालिक बनना
गुलाम बनना तय है उसका
गुलामी दुख लाती है
संताप लाती है...
जब मालकियत का भाव
चला जाता
तो बचती है मैत्री
होता सब वही है
चीजें सब वही
पर मुक्त हो जाते हैं ....
न मालकियत का सुख
न गुलामी का दुख
बचता है सिर्फ आनंद .....
इतनी जमीन का मालिक हूँ!
जमीन हंसती होगी नासमझी पर
कहती होगी !
तुम जैसे कितने आए और चले गए
जिसने चाहा मालिक बनना
गुलाम बनना तय है उसका
गुलामी दुख लाती है
संताप लाती है...
जब मालकियत का भाव
चला जाता
तो बचती है मैत्री
होता सब वही है
चीजें सब वही
पर मुक्त हो जाते हैं ....
न मालकियत का सुख
न गुलामी का दुख
बचता है सिर्फ आनंद .....
स्वीकार भाव सर....सही कहा ।
ReplyDeleteबिल्कुल सही
ReplyDelete😄😊🙏👍
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ReplyDelete👌👌👌
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