किसी की सिर्फ उपस्थिति,
और कुछ नहीं...
वह प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त है
कुछ भीतर खिलना शुरू होता है
तो प्रेम में हैं....
किसी के साथ होने भर से
हृदय में गहरे कुछ तुष्ट हो जाता है
हृदय में कुछ संगीत शुरू होता है
हृदय ताल से ताल मिला लेता है
तो प्रेम में हैं...
प्रेम जुनून नहीं
प्रेम गहरी समझ है
प्रेम स्वयं को पूरा करता है..
किसी अन्य की उपस्थिति
स्वयं की उपस्थिति को बढ़ाती है
प्रेम स्वयं होने की स्वतंत्रता देता है
यह स्वामित्व नहीं है...
और कुछ नहीं...
वह प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त है
कुछ भीतर खिलना शुरू होता है
तो प्रेम में हैं....
किसी के साथ होने भर से
हृदय में गहरे कुछ तुष्ट हो जाता है
हृदय में कुछ संगीत शुरू होता है
हृदय ताल से ताल मिला लेता है
तो प्रेम में हैं...
प्रेम जुनून नहीं
प्रेम गहरी समझ है
प्रेम स्वयं को पूरा करता है..
किसी अन्य की उपस्थिति
स्वयं की उपस्थिति को बढ़ाती है
प्रेम स्वयं होने की स्वतंत्रता देता है
यह स्वामित्व नहीं है...
वाह। बहुत खूब।
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteबच्चों के लिए उपयुक्त है।
ReplyDeleteअति उत्तम सर जी
ReplyDeleteशुभ प्रभात🌻🌻
ReplyDeleteवाह!बहुत सुंदर
ReplyDeleteशुभ प्रभात🌻🌻
ReplyDeleteकुछ बातों से सहमत हूँ।पर प्यार के दो प्रकार है।आत्मिक और देहिक।माया ममता आदर भक्ति आत्मिक प्रेम।विरूद्ध लिंग के प्रति प्रेम दैहिक प्रेम।क्षणिक होता है,उम्र के साथ प्रेम की गहराई बदलती है,सीमाएँ बदलती है।परिपक्व उम्र प्रेम भी परिपक्व।आत्मिक प्रेम का समाधान तुष्टि देता है।दैहिक लालच देता है,कष्ट देता है,बहुत लिखने का मन है।पर मानती हूँ किसी की उपस्थिती, विचार, उनसे संवाद मेरा दिन बना देता है मन कहता है u r in love bt donor disclose it.
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