आंख खोलकर एक प्रेम होता है,
वह रूप से है।
आंख बंद करके एक प्रेम होता है,
व अरूप से है।
कुछ पा लेने की इच्छा से एक प्रेम होता है
वह लोभ है।
अपने को समर्पित कर देने का एक प्रेम होता है,
वही भक्ति है।
पति-पत्नी लड़ते रहते हैं।
उनके बीच एक कलह का वातावरण रहता है।
कारण है क्योंकि ...
दोनों एक-दूसरे को कितना शोषण कर लें,
इसकी आकांक्षा है।
कितना कम देना पड़े और ...
कितना ज्यादा मिल जाए इसकी चेष्टा है।
यह संबंध बाजार का है,
व्यवसाय का है।
वह रूप से है।
आंख बंद करके एक प्रेम होता है,
व अरूप से है।
कुछ पा लेने की इच्छा से एक प्रेम होता है
वह लोभ है।
अपने को समर्पित कर देने का एक प्रेम होता है,
वही भक्ति है।
पति-पत्नी लड़ते रहते हैं।
उनके बीच एक कलह का वातावरण रहता है।
कारण है क्योंकि ...
दोनों एक-दूसरे को कितना शोषण कर लें,
इसकी आकांक्षा है।
कितना कम देना पड़े और ...
कितना ज्यादा मिल जाए इसकी चेष्टा है।
यह संबंध बाजार का है,
व्यवसाय का है।
सर नमस्कार ।
ReplyDeleteनमस्ते sir
Deleteबिलकुल सही फरमाया है।आज कल तो संबंध ओ का बाजार है और प्रेम
ReplyDeleteव्यवसाय ही है।कलयुग मे सच्चे प्रेम की उम्मीद रखना मूर्ख ता ही है।
रुप का प्रेम आकर्षण है जो ज्यादा नाही टिकता।भक्ति का प्यार भी तो स्वार्थ से भरा,या डर से परिपूर्ण होता है।ऐसे में कर्मा ही साथ देता है।
ReplyDelete👌👌👌
ReplyDelete👌👌👌
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