प्रत्येक उपकरण की सीमा है।
कान संगीत सुन सकते हैं,
रोशनी नहीं देख सकते।
आंखें रोशनी देख सकती हैं,
संगीत नहीं सुन सकतीं।
हाथ छू सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं,
गंध का अनुभव नहीं कर सकते।
प्रत्येक अनुभूति का अपना द्वार है।
और प्रत्येक अनुभूति केवल
अपने ही द्वार से उपलब्ध होती है।
बुद्धि पदार्थ को जान सकती है,
परमात्मा को नहीं।
हृदय परमात्मा को जान सकता है,
पदार्थ को नहीं।
इसलिए जिन्होंने हृदय को थोड़ा खुलने का अवसर दिया,
हृदय की कली को फूल बनने दिया,
उन्होंने फिर तर्क की बकवास छोड़ दी।
फिर वे परमात्मा में जीने लगे।
वे परमात्मा के लिए प्रमाण नहीं देते फिर,
वे स्वयं परमात्मा के प्रमाण हो जाते हैं।
उनका उठना, उनका बैठना,
उनका बोलना, उनका न बोलना
सब परमात्मा की अभिव्यक्ति हो जाती है।
कान संगीत सुन सकते हैं,
रोशनी नहीं देख सकते।
आंखें रोशनी देख सकती हैं,
संगीत नहीं सुन सकतीं।
हाथ छू सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं,
गंध का अनुभव नहीं कर सकते।
प्रत्येक अनुभूति का अपना द्वार है।
और प्रत्येक अनुभूति केवल
अपने ही द्वार से उपलब्ध होती है।
बुद्धि पदार्थ को जान सकती है,
परमात्मा को नहीं।
हृदय परमात्मा को जान सकता है,
पदार्थ को नहीं।
इसलिए जिन्होंने हृदय को थोड़ा खुलने का अवसर दिया,
हृदय की कली को फूल बनने दिया,
उन्होंने फिर तर्क की बकवास छोड़ दी।
फिर वे परमात्मा में जीने लगे।
वे परमात्मा के लिए प्रमाण नहीं देते फिर,
वे स्वयं परमात्मा के प्रमाण हो जाते हैं।
उनका उठना, उनका बैठना,
उनका बोलना, उनका न बोलना
सब परमात्मा की अभिव्यक्ति हो जाती है।
अति सुंदर अनिभूति सर ।
ReplyDeleteVery good sir
ReplyDeleteNice dir
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteUltimate
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