कोई नदी नहीं जो सागर से न मिले
कारण है पानी अपने स्वभाव में रहता है
बहता है, उस तरफ जहां उसका स्वभाव कहता है...
देखता हूँ अपने आप को
आदमी को बाधाएं खड़ी करने में मज़ा आता है
बांध बनाता है...
प्रेम स्वभाव है मनुष्य का
मगर बीच में खड़ी होती "अपेक्षा"
दूसरों से अपेक्षा...
अगर ऐसा नहीं तो
मेरा बेटा...
अपने आप से अपेक्षा
ऐसा होता आदर्श पिता
ऐसा होता आदर्श...!?!
अपने आप को बदल बदलकर
भूल ही गया मेरा स्वभाव क्या?
जो अपने आप को
जैसा है वैसा न स्वीकार कर सके
तो अपने आप से कैसे करे प्रेम
और अपने से न हो सका प्रेम
तो सभी प्रेम केवल भ्रांति...
अपेक्षा सब नष्ट कर देती..
कभी फुरसत से बैठो
किसी के नहीं!
अपने साथ ।
डुबकी अपने अंतरतम की
ढूंढो अपना स्वभाव...
शुभ प्रभात...!
कारण है पानी अपने स्वभाव में रहता है
बहता है, उस तरफ जहां उसका स्वभाव कहता है...
देखता हूँ अपने आप को
आदमी को बाधाएं खड़ी करने में मज़ा आता है
बांध बनाता है...
प्रेम स्वभाव है मनुष्य का
मगर बीच में खड़ी होती "अपेक्षा"
दूसरों से अपेक्षा...
अगर ऐसा नहीं तो
मेरा बेटा...
अपने आप से अपेक्षा
ऐसा होता आदर्श पिता
ऐसा होता आदर्श...!?!
अपने आप को बदल बदलकर
भूल ही गया मेरा स्वभाव क्या?
जो अपने आप को
जैसा है वैसा न स्वीकार कर सके
तो अपने आप से कैसे करे प्रेम
और अपने से न हो सका प्रेम
तो सभी प्रेम केवल भ्रांति...
अपेक्षा सब नष्ट कर देती..
कभी फुरसत से बैठो
किसी के नहीं!
अपने साथ ।
डुबकी अपने अंतरतम की
ढूंढो अपना स्वभाव...
शुभ प्रभात...!
अपेक्षा सब कुछ नष्ट कर देती है, वाह सर क्या बात कही।
ReplyDeleteWaa Bahut khoob mama ji 👌
ReplyDeleteWaa Bahut khoob mama ji 👌
ReplyDeleteशुभ प्रभात🌻🌻
ReplyDeleteशुभ प्रभात🌻🌻
ReplyDeleteBahut Sunday sir
ReplyDeleteBahot khoob sirji
ReplyDeleteपरिवर्तन प्रक्रति का नियम है।स्वभाव जल की तरह हो तो आनंद ही है। अपेक्षा मानव की कमजोरी है,हमारा विनाश करती है,जानते हुए भी जाने अंजाने में अपेक्षा बंध ही जाती है,प्रेम में,कर्तव्य में,सहचर्य मे,भक्ति में अपेक्षा ही होती है।कोई माने या न माने।
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