Skip to main content

काश स्कूल न गया होता......

मैंने अपनी दादी
को सुना था बचपन में
वो बताती थी
हर तरह के सपने का अर्थ
और मैं सोचा करता था
सपने क्या होते हैं?
फिर समझ आया
अरे रात को पूरा
सिनेमा चलता है,
फिर तो मज़ा आने लगा,
और रोज सुबह,
दादी से पूंछा करता
क्या मतलब है दादी?
हाथ फेरकर सर पर, वो कहती
बेटा, इसका मतलब है
तुम बहुत अच्छे इंसान बनोगे
फिर मैं पूंछा करता
दादी ये "अच्छा इंसान"
क्या होता है
और वो कहती
जब बनोगे तो समझ जाओगे

और अचानक एक दिन
मेरे शिक्षक महोदय ने कहा
"सपने वो नहीं होते
जो बंद आँखों से देखे जाएँ
सपने वो होते हैं जो खुली
आँखों से देखे जाते हैं।"

मैं था बहुत हैरान,
थोड़ा सा परेशान,
क्योंकि मेरे सपनों की
धारणा बिखर रही थी

मैंने खूब कौशिश की
रात को आँख खोलकर सोने की
मगर न तो सो पाता
न सपनों का था कहीं पता
फिर लगा दादी ही सच्ची हैं
शिक्षक झूठ बोलता है

पर .....
सिलसिला शुरू हो चुका था
स्कूल जाने का
और सुना बार-बार...बारंबार
सपने खुली आँखों से देखे जाते हैं
मैं भी सीख गया
खुली आँखों से सपना  देखना

अब याद आती है दादी की
कहती थी अच्छा इंसान बनूगा,
पर लगता है, लगता नहीं,
सच है ये
इंसान तो नहीं,
मशीन बन गया हूँ
काश स्कूल न गया होता.......?..
.....x........x......x .......

Comments

Popular posts from this blog

नया साल ! क्या सचमुच नया है ?

31 दिसम्बर की रात, पूरा माहौल रंगीन और जश्न में डूबा है। उत्तेजना बढ़ती जाती है और इकतीस दिसंबर की आधी रात हम सोचते हैं कि पुराना साल रात की सियाही में डुबोकर कल सब कुछ नया हो जाएगा। यह एक रस्म है जो हर साल निभाई जाती है, जबकि हकीकत यह है कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज नए दिन को न देख पाने के कारण हम वर्ष में एक बार नए दिन को देखने की कोशिश करते हैं। दिन तो कभी पुराना नहीं लौटता, रोज ही नया होता है, लेकिन हमने अपनी पूरी जिंदगी को पुराना कर डाला है। उसमें नए की तलाश मन में बनी रहती है। तो वर्ष में एकाध दिन नया दिन मानकर अपनी इस तलाश को पूरा कर लेते हैं। यह सोचने जैसा है जिसका पूरा वर्ष पुराना होता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है? जिसकी पूरे साल पुराना देखने की आदत हो वह एक दिन को नया कैसे देख पाएगा? देखने वाला तो वही है, वह तो नहीं बदल गया। जिसके पास ताजा मन हो वह हर चीज को ताजी और नई कर लेता है, लेकिन हमारे पास ताजा मन नहीं है। इसलिए हम चीजों को नया करते हैं। मकान पर नया रंग-रोगन कर लेते हैं, पुरानी कार बदलकर नई कार ले लेते हैं, पुराने कपड़े की जगह नया कपड़ा लाते हैं। हम...

Teachers day शिक्षा व्यवस्था बनाम शिक्षा

कोई भी व्यक्ति ठीक अर्थों में शिक्षक तभी हो सकता है जब उसमें विद्रोह की एक अत्यंत ज्वलंत अग्नि हो। जिस शिक्षक के भीतर विद्रोह की अग्नि नहीं है वह केवल किसी न किसी निहित, स्वार्थ का, चाहे समाज, चाहे धर्म, चाहे राजनीति, उसका एजेंट होगा। शिक्षक के भीतर एक ज्वलंत अग्नि होनी चाहिए विद्रोह की, चिंतन की, सोचने की। लेकिन क्या हममें सोचने की अग्नि है और अगर नहीं है तो आ एक दुकानदार हैं। शिक्षक होना बड़ी और बात है। शिक्षक होने का मतलब क्या है? क्या हम सोचते हैं- सारी दुनिया में सिखाया जाता है बच्चों को, बच्चों को सिखाया जाता है, प्रेम करो! लेकिन कभी  विचार किया है कि पूरी शिक्षा की व्यवस्था प्रेम पर नहीं, प्रतियोगिता पर आधारित है। किताब में सिखाते हैं प्रेम करो और पूरी व्यवस्था, पूरा इंतजाम प्रतियोगिता का है। जहां प्रतियोगिता है वहां प्रेम कैसे हो सकता है। जहां काम्पिटीशन है, प्रतिस्पर्धा है, वहां प्रेम कैसे हो सकता है। प्रतिस्पर्धा तो ईर्ष्या का रूप है, जलन का रूप है। पूरी व्यवस्था तो जलन सिखाती है। एक बच्चा प्रथम आ जाता है तो दूसरे बच्चों से कहते हैं कि देखो तुम पीछे रह गए और यह पहले आ ...

Online MCQ test Vachya वाच्य

Loading…