घर के दरवाजे पर
लगी है एक तख्ती
जिस पर लिखा है मेरा नाम
और लिखीं हैं उपाधियां
उपाधियां जो कि हैं
सिर्फ कागजी
पर मन करता है
लोग देखें और जानें
कितना इकठ्ठा किया है मैंने
पता है, हाँ पता है मुझे
जो है, "बिलकुल कचरा"
पर सजाया है उसको
लोंगो के लिए
क्योंकि लोग तालियां बजाते हैं
वाहः कहते हैं
एक अजीब सी गम्भीरता
को ओढ़ लिया है मैंने
"बच्चा नहीं हूँ मैं"
जबकि जानता हूँ, हाँ जानता हूँ
बच्चा ही सच्चा है
पर...
कभी कभी मन करता है
इन सबने मुझे बनाया
या मैं हूँ कुछ और,
या कि "मैं"
हूँ ही नहीं ....?.......
.............x.......x.......x.....
लगी है एक तख्ती
जिस पर लिखा है मेरा नाम
और लिखीं हैं उपाधियां
उपाधियां जो कि हैं
सिर्फ कागजी
पर मन करता है
लोग देखें और जानें
कितना इकठ्ठा किया है मैंने
पता है, हाँ पता है मुझे
जो है, "बिलकुल कचरा"
पर सजाया है उसको
लोंगो के लिए
क्योंकि लोग तालियां बजाते हैं
वाहः कहते हैं
एक अजीब सी गम्भीरता
को ओढ़ लिया है मैंने
"बच्चा नहीं हूँ मैं"
जबकि जानता हूँ, हाँ जानता हूँ
बच्चा ही सच्चा है
पर...
कभी कभी मन करता है
इन सबने मुझे बनाया
या मैं हूँ कुछ और,
या कि "मैं"
हूँ ही नहीं ....?.......
.............x.......x.......x.....
अंतर्द्वंद्व की सुन्दर व्याख्या । इस बनावटी दुनिया के रीतियों के अनुरूप ढलने की कोशिश में हम सब अपनी मौलिकता खो रहे हैं । धर्मेन्द्र सर के शुभ्र अंतस और उनकी ऊर्जा को नमन
ReplyDeleteBahot khoob aur sach kaha aap ne...
ReplyDeleteAap ko sooch shakti ko salaam..
बहुत सुन्दर और सच्ची अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर व यथार्थ को अभिव्यक्त करती पंक्तियाँ
ReplyDeleteअपने मन की गहराई को हमसे बेहतर जाने कौन
ReplyDeleteसबके हैं किरदार बहुत से फिर सच को पहचाने कौन।।
ईमानदार अभिव्यक्ति को सादर नमन।
एक परख।
ReplyDeleteउपाधियां भी अजीब है मामा जी, लोगो के कारण ही इन उपाधियो को सजाना पड़ता है, और ये सब बेकार है लेकिन एक बात तो है ये दुनिया बहुत ही बनावटी है..
ReplyDeleteआप ने सच ही कहा mama Ji 👌 😊👍
Waoooo so nice it really heart touching lines
ReplyDeleteबहुत सुंदर मर्मस्पर्शी भाव
ReplyDeleteबेहतरीन कविता| मूलत: द्वन्द्वात्मकता का विवेचन कविता का प्राणतत्व है|
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