शिरीष
के फूल
आचार्य
हजारी प्रसाद द्विवेदी
सारांश –‘आचार्य
हजारी प्रसाद द्विवेदी’ शिरीष को अद्भुत अवधूत मानते हैं, क्योंकि संन्यासी की
भाँति वह सुख-दुख की चिंता नहीं करता। गर्मी, लू, वर्षा और आँधी में भी अविचल खड़ा
रहता है। शिरीष के फ़ूल के माध्यम से मनुष्य की अजेय जिजीविषा, धैर्यशीलता और
कर्तव्यनिष्ठ बने रहने के मानवीय मूल्यों को स्थापित किया गया है।लेखक ने शिरीष के
कोमल फूलों और कठोर फलों के द्वारा स्पष्ट किया है कि हृदय की कोमलता बचाने के लिए
कभी-कभी व्यवहार की कठोरता भी आवश्यक हो जाती है| महान कवि कालिदास और कबीर भी
शिरीष की तरह बेपरवाह, अनासक्त और सरस थे तभी उन्होंने इतनी सुन्दर रचनाएँ संसार
को दीं| गाँधीजी के व्यक्तित्व में भी
कोमलता और कठोरता का अद्भुत संगम था | लेखक सोचता है कि हमारे देश में जो मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर
का बवंडर है, क्या वह देश को स्थिर नहीं रहने देगा? गुलामी,
अशांति और विरोधी वातावरण के बीच अपने सिद्धांतों की रक्षा करते हुए गाँधीजी जी
स्थिर रह सके थे तो देश भी रह सकता है। जीने की प्रबल अभिलाषा के कारण विषम
परिस्थितयों मे भी यदि शिरीष खिल सकता है तो हमारा देश भी विषम परिस्थितियों में
स्थिर रह कर विकास कर सकता है।
प्रश्न1-सिद्ध
कीजिए कि शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है
?
उत्तर- शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति
जीवन की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है|
जब पृथ्वी अग्नि के समान तप रही होती है वह तब भी कोमल फूलों से लदा
लहलहाता रहता है|बाहरी गरमी, धूप, वर्षा आँधी, लू उसे प्रभावित नहीं करती।
इतना ही नहीं वह लंबे समय तक खिला रहता है | शिरीष विपरीत परिस्थितियों में भी
धैर्यशील रहने तथा अपनी अजेय
जिजीविषा के साथ निस्पृह भाव से प्रचंड गरमी में भी अविचल खड़ा रहता है।
प्रश्न२-आरग्वध
(अमलतास) की तुलना शिरीष से क्यों नहीं की
जा सकती ?
उत्तर- शिरीष के फूल भयंकर गरमी में
खिलते हैं और आषाढ़ तक खिलते रहते हैं जबकि अमलतास का फूल केवल पन्द्रह-बीस दिनों
के लिए खिलता है | उसके बाद अमलतास के फूल झड़ जाते हैं और पेड़ फिर से ठूँठ का ठूँठ
हो जाता है | अमलतास अल्पजीवी है | विपरीत परिस्थितियों को झेलता हुआ ऊष्ण वातावरण
को हँसकर झेलता हुआ शिरीष दीर्घजीवी रहता
है | यही कारण है कि शिरीष की तुलना अमलतास से नहीं की जा सकती |
प्रश्न३-शिरीष
के फलों को राजनेताओं का रूपक क्यों दिया
गया है?
उत्तर- शिरीष के फल उन बूढ़े, ढीठ और
पुराने राजनेताओं के प्रतीक हैं जो अपनी कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते | अपनी अधिकार-लिप्सा के लिए नए युवा नेताओं को आगे
नहीं आने देते | शिरीष के नए फलों को जबरदस्ती पुराने फलों को धकियाना पड़ता है |
राजनीति में भी नई युवा पीढ़ी, पुरानी पीढ़ी को हराकर स्वयं सत्ता सँभाल लेती है |
प्रश्न४- काल
देवता की मार से बचने का क्या उपाय बताया गया है?
उत्तर- काल देवता कि मार से बचने का
अर्थ है– मृत्यु से बचना | इसका एकमात्र उपाय यह है कि मनुष्य स्थिर न हो| गतिशील,
परिवर्तनशील रहे | लेखक के अनुसार जिनकी
चेतना सदा ऊर्ध्वमुखी (आध्यात्म की ओर) रहती है, वे टिक जाते हैं |
प्रश्न५-
गाँधीजी और शिरीष की समानता प्रकट कीजिए |
उत्तर- जिस प्रकार शिरीष चिलचिलाती
धूप, लू, वर्षा और आँधी में भी अविचल खड़ा रहता है, अनासक्त रहकर अपने वातावरण से
रस खींचकर सरस, कोमल बना रहता है, उसी प्रकार गाँधी जी ने भी अपनी आँखों के सामने
आजादी के संग्राम में अन्याय, भेदभाव और हिंसा को झेला | उनके कोमल मन में एक ओर निरीह जनता के प्रति असीम करुणा जागी वहीं वे अन्यायी शासन
के विरोध में डटकर खड़े हो गए |
गद्यांश-आधारित
अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर
गद्यांश संकेत- पाठ – शिरीष के फूल (पृष्ठ १४७)
कालिदास सौंदर्य के
..............................................................................................................वह
इशारा है |
(क)
कालिदास
की सौंदर्य–दृष्टि की क्या विशेषता थी ?
उत्तर-कालिदास की
सौंदर्य–दृष्टि बहुत सूक्ष्म, अंतर्भेदी और संपूर्ण थी| वे केवल बाहरी रूप-रंग और
आकार को ही नहीं देखते थे बल्कि अंतर्मन की सुंदरता के भी पारखी थे| कालिदास
की सौंदर्य शारीरिक और मानसिक दोनों
विशेषताओं से युक्त था |
(ख)
अनासक्ति
का क्या आशय है?
उत्तर- अनासक्ति
का आशय है- व्यक्तिगत सुख-दुःख और
राग-द्वेष से परे रहकर सौंदर्य के वास्तविक मर्म को जानना |
(ग)
कालिदास,
पंत और रवींद्रनाथ टैगोर में कौन सा गुण समान था?
महाकवि कालिदास, सुमित्रानंदन पंत और गुरुदेव
रवींद्रनाथ टैगोर तीनों स्थिरप्रज्ञ और अनासक्त कवि थे | वे शिरीष के समान सरस और
मस्त अवधूत थे |
(घ)
रवींद्रनाथ
राजोद्यान के सिंहद्वार के बारे में क्या संदेश देते हैं ?
राजोद्यान के बारे में रवींद्रनाथ कहते हैं
राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही सुंदर और गगनचुम्बी क्यों ना हो, वह अंतिम पड़ाव
नहीं है| उसका सौंदर्य किसी और उच्चतम सौंदर्य की ओर किया गया संकेत मात्र है कि
असली सौंदर्य इसे पार करने के बाद है अत: राजोद्यान का सिंहद्वार हमें आगे बढ़ने की
प्रेरणा देता है |