जूझ:
आनंद यादव
पाठ का सार –‘जूझ’ पाठ आनंद यादव द्वारा रचित स्वयं के जीवन–संघर्ष की कहानी है|
पढ़ाई पूरी न कर पाने के कारण, उसका मन उसे कचोटता रहता था |दादा ने अपने स्वार्थों
के कारण उसकी पढ़ाई छुड़वा दी थी |वह जानता था कि दादा उसे पाठशाला नहीं भेजेंगे |
आनंद जीवन में आगे बढ़ना चाहता था | वह जनता था कि खेती से कुछ मिलने वाला नहीं |वह
पढ़ेगा-लिखेगा तो बढ़िया-सी नौकरी मिल जाएगी |
     
आनंद ने एक योजना बनाई कि वह माँ को लेकर गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति दत्ता
जी राव के पास जाएगा| दत्ता जी राव ने उनकी पूरी बात सुनी और दादा को उनके पास
भेजने को कहा | दत्ता जी ने उसे खूब फटकारा, आनंद को भी बुलाया | दादा ने भी कुछ
बातें रखीं कि आनंद को खेती के कार्य में मदद करनी होगी| आनंद ने उनकी सभी बातें
सहर्ष मान लीं| आनंद की पढ़ाई शुरू हो गई| शुरु में कुछ शरारती बच्चों ने उसे तंग किया
किन्तु धीरे-धीरे उसका मन लगने लगा| उसने कक्षा के मानीटर वसंत पाटिल से दोस्ती कर
ली जिससे उसे ठीक प्रकार से पढ़ाई करने की प्रेरणा मिली| कई परेशानियों से जूझते
हुए आनंद ने शिक्षा का दामन नहीं छोड़ा| मराठी पढ़ाने के लिए श्री सौंदलगेकर आए|
उन्होंने आनंद के हृदय में एक गहरी छाप छोड़ी| उसने भी कविताओं में रूचि लेनी
प्रारम्भ की| उसने खेतों में काम करते –करते कविताएँ कंठस्थ की| मास्टर ने उसकी
कविता बड़े ध्यान से सुनी| बालक का आत्मविश्वास बढ़ने लगा और उसकी काव्य-प्रतिभा में
निखार आने लगा |
प्रश्नोत्तर- 
१.     
जूझ कहानी के
आधार पर दत्ता जी राव देसाई का चरित्र-चित्रण कीजिए । 
     
उत्तर 1.   
समझदार व्यक्ति– दत्ता जी राव
ने छोटे से बालक आनंद की बातों को सुना| फिर  
आनंद के दादा को बुलाया और आनंद को विद्यालय भेजने पर जोर दिया| उन्होंने
दादा से इस प्रकार बातें की कि उन्हें शक ही नहीं हुआ कि ये सब उन्हें आनंद ने
बताया है| 
            2.     ग्रामीणों के मददगार – दत्ता जी गाँव के
प्रतिष्ठित एवम प्रभावशाली व्यक्ति थे किंतु उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा का दुरुपयोग
नहीं किया| ग्रामीण उनके पास अपनी समस्याएँ लेकर आते थे| दत्ता जी उनकी समस्याओं
को हल करने का प्रयास करते थे|
            3.प्रभावशाली
व्यक्तित्व– दत्ता जी गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति
थे| सभी उन्हें बहुत मान देते थे| उनका व्यक्तित्व रोबीला था और ग्रामीण उनकी बात
मान जाते थे|      
२ . जूझ कहानी का उद्देश्य क्या है ?           अथवा 
‘विषम परिस्थितियों में भी विकास संभव
है।’‘जूझ’ कहानी के आधार पर स्पष्ट
कीजिए|
     
उत्तरः  इस कहानी का मुख्य उद्देश्य
है कि मनुष्य को संघर्ष करते रहना चाहिए| कहानी में  लेखक के जीवन के संघर्ष को, उसके परिवेश के साथ दिखलाया गया है। लेखक का शिक्षा-प्राप्ति हेतु पिता
से संघर्ष,कक्षा में संघर्ष,खेती
में संघर्ष और अंत में उसकी सफलता कहानी के उद्देश्य को
स्पष्ट करते हैं। अतः समस्याओं से भागना नहीं चाहिए| पूरे आत्मविश्वास से उनका
मुकाबला करना चाहिए| संघर्ष करने वाले को सफलता अवश्य मिलती है|
३ . ‘जूझ’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।
    
उत्तरः जूझका अर्थ है –संघर्ष| यह कथा ,कथानायक के जीवन भर के
संघर्ष को दर्शाती है| बचपन से अभावों में पला बालक, विपरीत परिस्थितियों पर विजय
हासिल कर सका|अतः यदि मन में लगन हो, भरपूर आत्मविश्वास हो तो सफलता कदम चूमती है
|
४ . ‘जूझ’ कहानी के आधार पर आंनदा के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।        अथवा 
 ‘जूझ’शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट
करें कि क्या यह शीर्षक कथानायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर
करता है?
 उत्तरः 1.
पढ़ने की लालसा- आनंदा पिता के साथ
खेती का काम सँभालता था| लेकिन पढ़ने की तीव्र इच्छा ने उसे जीवन का एक उद्देश्य दे
दिया और वह अपने भविष्य को एक सही दिशा देने में सफल होता है| 
        2. वचनबद्धता-
आनंदा ने विद्यालय जाने के लिए पिता की जो शर्तें मानी थी उनका पालन हमेशा किया|
वह विद्यालय जाने से पहले बस्ता लेकर खेतों में पानी देता| वह ढोर चराने भी जाता|
पिता की बातों का अनुपालन करता|
             3.   आत्मविश्वासी एवं कर्मठ बालक–आनंदा के जीवन
में अभाव ही थे| उसके पिता ने ही उसका पाठशाला जाना बंद करवा दिया था| किंतु उसने
हिम्मत नहीं हारी, पूरे आत्मविश्वास के साथ योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ा और सफल
हुआ|      
      ४ .   कविता
के प्रति झुकाव- आनंदा ने मास्टर सौंदलगेकर से
प्रभावित होकर काव्य में रुचि लेनी प्रारम्भ की| वह खेतों में पानी देता, भैंस
चराते समय भी कविताओं में खोया रहता था| धीरे-धीरे वह स्वयं तुकबंदी करने लगा|
कविताएँ लिखने से उसमें आत्मविश्वास बढ़ा|
५ .     आनन्दा के पिता की भाँति आज
भी अनेक गरीब व कामगार पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहतेथे, क्यों?
आपकी दृष्टि में उन्हें किस प्रकार प्रेरित किया जा सकता है?
     
उत्तरः  अधिकतर लोग अशिक्षित होने
के कारण शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते| अधिक बच्चे , कम आमदनी, दो अतिरिक्त हाथों से कमाई की लालसा आदि इसके प्रमुख कारण हैं। उन्हें प्रेरित करने हेतु उन्हें जागरूक
करना, शिक्षा का महत्त्व बताना,शिक्षित होकर जीवन
स्तर में सुधार के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
६ . सकारात्मक सृजनात्मकता से आत्मविश्वास को दृढ़ता मिलती है। जूझ कहानी के
आधार पर समझाइए।
 
उत्तरः लेखक ने पढ़ाई में स्वयं को पिछड़ता हुआ पाया| किंतु शिक्षक सौदंलगेकर
से प्रेरित होकर लेखक  कुछ तुकबंदी करने
लगा| धीरे –धीरे उसमें आत्मविश्वास बढ़ने लगा| सृजनात्मकता ने उसके जीवन को नया मोड़
दिया| अतः लेखक के द्वारा कविता रच लेने से उसमें आत्मविश्वास का सृजन हुआ।
७. ‘जूझ’कहानी के आधार पर बताइए कि एक प्रभावशाली शिक्षक
किस तरह अपने विद्यार्थी का भविष्य सँवार सकता है?               अथवा 
आनन्दा से कवि डॉ. आनन्द यादव बनने की
यात्रा में मास्टर सौंन्दलगेकर की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
 
उत्तरः      मास्टर सौंदलगेकर
कुशल अध्यापक, मराठी के ज्ञाता व
कवि,सुरीले ढंग से स्वयं कीव दूसरों की कविताएँ गाते थे। आनन्दा को कविता या तुकबन्दी लिखने के प्रारम्भिक काल में उन्होंने
उसका मार्गदर्शन व सुधार किया,उसका आत्मविश्वास
बढ़ाया जिससे वह धीरे-धीरे कविताएँ लिखने में कुशल हो कर प्रतिष्ठित कवि बन गया।
८.  आनन्दा कोपुनः स्कूल जाने पर
क्या-क्या झेलना पड़ा ?
     
उत्तरः  स्वयं से कम आयु के छात्रों
के साथ बैठना पड़ा,वह अन्य छात्रों की
हँसी का पात्र  बना तथा उसे पिता की इच्छा
के कारण घर व स्कूल दोनों में निरंतर काम करना पड़ा।
९ . स्कूल में मानीटर ने आनंदा को सर्वाधिक प्रभावित किया और कैसे?
     
उत्तरः  मानीटर बसंत पाटिल
ने उसे सर्वाधिक प्रभावित किया|वह शांत व अध्ययनशील छात्र था। आनंदा उसकी
नकल कर हर काम करने लगा,धीरे-धीरे एकाग्रचित व
अध्ययनशील बनकर  आनन्दा भी कक्षा में
सम्मान का पात्र बन गया।
१० . आपके दृष्टि से पढ़ाई-लिखाई के सम्बन्ध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया
सही था या लेखक के पिता का?तर्क सहित उतर दीजिए।
       उत्तरः लेखक
का मत है कि जीवन भर खेतों में काम करके कुछ भी हाथ आने वाला नहीं है। पीढ़ी
दर पीढ़ी खेतों में काम करके कुछ प्राप्त नहीं हो सका। वे मानते हैं कि यह खेती
हमें गढ्ढे में धकेल रही है। अगर मैं पढ़-लिख गया तो कहीं मेरी नौकरी लग जाएगी
या कोई व्यापार करके अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता है। माँ-बेटा जब दत्ता जी राव
के घर जाकर पूरी बात बताते हैं तो दत्ता जी राव पिता जी को बुलाकर खूब डाँटते हैं
और कहते हैं कि तू सारा दिन क्या करता है। बेटे और पत्नी को खेतों में जोत कर तू
सारा दिन साँड की तरह घूमता रहता है। कल से बेटे को स्कूल भेज, अगर पैसे नहीं हैं तो फीस मैं दूँगा। परन्तु पिता जी को यह सब कुछ बुरा
लगा। दत्ता जी राव के सामने ‘हाँ’ करने
के बावजूद भी वे आनन्द को स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं थे। इस प्रकार लेखक और
उनके पिताजी की सोच में  एक बड़ा अन्तर है।
हमारे खयाल से पढ़ाई-लिखाई के सम्बन्ध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया लेखक
के पिता की सोच से ज्यादा ठीक है क्योंकि पढ़ने-लिखने से व्यक्ति का सर्वागींण
विकास होता है।
अन्य महत्त्वपूर्ण अभ्यास-प्रश्न:
१. जूझ पाठ के आधार पर बताइए कि कौन,
किससे, कहाँ जूझ रहा है तथा अपनी जूझ में कौन सफल होता है? 
२. आनंदा का पिता कोल्हू जल्दी क्यों
चलवाता था?
३. पाठशाला में आनंदा का पहला अनुभव
कैसा रहा?
४. दत्ता राव के सामने रतनप्पा ने
आनंदा को स्कूल न भेजने का क्या कारण बताया ?
५. आनंदा के
पिता ने उसे पाठशाला भेजने की सहमति किस शर्त पर दी?