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रूबाइयाँ-अध्ययन

रूबाइयाँ
फ़िराक गोरखपुरी
मूल नामरघुपति सहाय फ़िराक
   उर्दू शायरी की रिवायत के विपरीत फिराक गोरखपुरी के साहित्य में लोक जीवन एवं प्रकृति की झलक मिलती है। सामाजिक संवेदना वैयक्तिक अनुभूति बन कर उनकी रचनाओं में व्यक्त हुई है।जीवन का कठोर यथार्थ उनकी रचनाओं में स्थान पाता है।उन्होंने लोक भाषा के प्रतीकों का प्रयोग किया है। लाक्षणिक प्रयोग उनकी भाषा की विशेषता है।फ़िराक की रुबाईयों में घरेलू हिंदी का रूप दिखता है |
रुबाई उर्दू और फ़ारसी का एक छंद या लेखन शैली है जिसमें चार पंक्तियाँ होती हैं |इसकी पहली ,दूसरी और चौथी पंक्ति में तुक (काफ़िया)मिलाया जाता है तथा तीसरी पंक्ति स्वच्छंद होती है |
“वो रूपवती मुखड़े पे इक नर्म दमक”
“बच्चे के घरोंदे में जलाती है दिए।“
“रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली”
“बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे”
“भाई के है बाँधती चमकती राखी।“- जैसे प्रयोग उनकी भाषा की सशक्तता के नमूने के तौर पर देखे जा सकते हैं |
सार
रूबाइयाँ
रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है। रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बिजली के लच्छे हैं। सावन में रक्षाबंधन आता है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है, घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का बहन से होता है ।
गज़ल
पाठ में फिराक की एक गज़ल भी शामिल है। रूबाइयों की तरह ही फिराक की गजलों में भी हिंदी समाज और उर्दू शायरी की परंपरा भरपूर है। इसका अद्भुत नमूना है यह गज़ल। यह गज़ल कुछ इस तरह बोलती है कि जिसमें  दर्द भी है, एक शायर की ठसक भी है और साथ ही है काव्य-शिल्प की वह ऊँचाई जो गज़ल की विशेषता मानी जाती है।
अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न
“आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी”
प्रश्न१:- ‘चाँद के टुकड़े’का प्रयोग किसके लिए हुआ है? और क्यों ?
उत्तर :-बच्चे को चाँद का टुकड़ा कहा गया है जो माँ  के लिए बहुत प्यारा होता है।
प्रश्न२:- गोद-भरी प्रयोग की विशेषता को स्पष्ट कीजिए |
उत्तर :- गोद-भरी शब्द-प्रयोग माँ के वात्सल्यपूर्ण, आनंदित उत्साह को प्रकट करता है |यह अत्यंत सुंदर दृश्य बिंब है | सूनी गोद के विपरीत गोद का भरना माँ के लिए असीम सौभाग्य का सूचक है |इसी सौभाग्य का सूक्ष्म अहसास माँ को तृप्ति दे रहा है|
प्रश्न३:- लोका देना किसे कहते हैं ?
   उत्तर :-  जब माँ  बच्चे को बाहों में लेकर हवा में उछालती है इसे लोका देना कहते हैं|छोटे  बच्चों को यह खेल बहुत अच्छा लगता है
प्रश्न४:- बच्चा माँ की गोद में कैसी प्रतिक्रिया करता है?
उत्तर :- हवा में उछालने ( लोका देने) से बच्चा माँ का वात्सल्य पाकर प्रसन्न होता है और  खिलखिला कर हँस पड़ता है।बच्चे की किलकारियाँ माँ के आनंद को दुगना कर देती हैं|



सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न
“नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके           
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े”
प्रश्न१:- प्रस्तुत पंक्तियों के भाव सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए |
उत्तर :- माँ ने अपने बच्चे को निर्मल जल से नहलाया उसके उलझे बालों में कंघी  की |माँ के स्पर्श एवं नहाने के आनंद से बच्चा प्रसन्न हो कर बड़े प्रेम से माँ को निहारता है| प्रतिदिन की एक स्वाभाविक क्रिया से कैसे माँ-बच्चे का प्रेम विकसित होता है और प्रगाढ़ होता चला जाता है इस भाव को इस रुबाई में बड़ी सूक्ष्मता के साथ प्रस्तुत किया गया है|
प्रश्न२:- काव्यांश में आए बिंबों को स्पष्ट कीजिए |
उत्तर :-१“नहला के छलके-छलके निर्मल जल से”- इस प्रयोग द्वारा कवि ने बालक की निर्मलता एवं पवित्रता को जल की निर्मलता के माध्यम से अंकित किया है | छलकना शब्द जल की ताजा बूंदों का बालक के शरीर पर छलछलाने का सुंदर दृश्य बिंब प्रस्तुत करता है |
२ ‘घुटनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े’- इस प्रयोग में माँ की बच्चे के प्रति सावधानी ,चंचल बच्चे को चोट पहुँचाए बिना उसे कपड़े पहनाने से  माँ के मातृत्व की कुशलता बिंबितहोती है |
“किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को”- पंक्ति में माँ –बच्चे का वात्सल्य बिंबित हुआ है | माँ से प्यार –दुलार ,स्पर्श –सुख, नहलाए जाने के आनंद को अनुभव करते हुए बच्चा माँ को प्यार भरी नजरों से देख कर उस सुख की अभिव्यक्ति कर रहा है |यह सूक्ष्म भाव अत्यंत मनोरम बन पड़ा है |संपूर्ण रुबाई में दृश्य बिंब है|
प्रश्न ३:-काव्यांश के शब्द-प्रयोग पर टिप्पणी लिखिए |
उत्तर :-गेसु –उर्दू शब्दों का प्रयोग
घुटनियों ,पिन्हाती – देशज शब्दों के माध्यम से कोमलता की अभिव्यक्ति
छलके –छलके –शब्द की पुनरावृत्ति से अभी –अभी  नहलाए गए बच्चे के गीले शरीर का बिंब
आदि विलक्षण प्रयोग रुबाइयों को  विशिष्ट बना देते हैं |हिंदी,उर्दू और लोकभाषा के अनूठे गठबंधनकी झलक, जिसे गांधीजी हिंदुस्तानी के रूप में पल्लवित करना चाहते थे,देखने को मिलती है |
विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर
रूबाइयाँ
प्रश्न १ :-काव्य में प्रयुक्त बिंबों  का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए?
उत्तर :-
  • दृश्य बिंब :-बच्चे को गोद में लेना , हवा में उछालना ,स्नान कराना ,घुटनों में लेकर कपड़े पहनाना|
  • श्रव्यबिंब :-  बच्चे का  खिलखिला कर हँस पड़ना।
  • स्पर्श बिंब :-बच्चे को स्नान कराते हुए स्पर्श करना |
प्रश्न २:-“आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है ,बालक तो हई चाँद पै ललचाया है’- में बालक की कौन सी विशेषता अभिव्यक्त हुई है?
उत्तर :- इन पंक्तियों में बालक की हठ करने की विशेषता अभिव्यक्त हुई है। बच्चे जब जिद पर आ जाते हैं तो अपनी इच्छा पूरी करवाने  के लिए नाना प्रकार की हरकतें किया करते हैं| ज़िदयाया शब्द लोक भाषा का विलक्षण प्रयोग है इसमें बच्चे का ठुनकना , तुनकना ,पाँव पटकना, रोना आदि सभी क्रियाएँ शामिल हैं |
प्रश्न ३ लच्छे किसे कहा गया है इनका संबंध किस त्यौहार से है?
उत्तर :- राखी के चमकीले तारों को लच्छे कहा गया है। रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बिजली के लच्छे हैं। सावन में रक्षाबंधन आता है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है, घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का बहन से होता है|सावन में बिजली की चमक की तरह राखी के चमकीले धागों की सुंदरता देखते ही बनती है|


अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न
गज़ल
फ़िराक गोरखपुरी
“नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाज़ुक गिरहें खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो- बू गुलशन में पर तौले हैं |”
प्रश्न१:- ‘नौरस’ विशेषण द्वारा कवि किस अर्थ की व्यंजना करना चाहता है ?
उत्तर :नौरस अर्थात नया रस ! गुंचे अर्थात कलियों में नया –नया रस भर आया है |
प्रश्न२:-  पंखड़ियों की नाज़ुक गिरहें खोलने का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :- रस के भर जाने से कलियाँ विकसित हो रही हैं |धीरे-धीरे उनकी पंखुड़ियाँ अपनी बंद गाँठें खोल रही हैं | कवि के शब्दों में नवरस ही उनकी बंद गाँठें खोल रहा है|
प्रश्न३:- ‘रंगो- बू गुलशन में पर तौले हैं’ – का अर्थ स्पष्ट कीजिए|
उत्तर :-रंग और सुगंध दो पक्षी हैं जो कलियों में बंद हैं तथा उड़ जाने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रहे हैं |यह स्थिति कलियों के फूल बन जाने से पूर्व की है जो फूल बन जाने की प्रतीक्षा में हैं |’पर तौलना’ एक मुहावरा है जो उड़ान की क्षमता आँकने के लिए प्रयोग किया जाता है |
प्रश्न४:- इस शेर का भाव-सौंदर्य  व्यक्त कीजिए|
उत्तर :-कलियों की नई-नई पंखुड़ियाँ खिलने लगी हैं उनमें से रस मानो  टपकना ही चाहता है | वय:संधि(किशोरी)नायिका के प्रस्फुटित होते सौंदर्य का प्रतीकात्मक चित्रण अत्यंत सुंदर बन पड़ा है |
सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न
हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हम को रो लेवे हैं  हम किस्मत को रो ले हैं|
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा पर्दा खोले हैं या अपना पर्दा खोले हैं |
प्रश्न१:- इन  शेरों  की भाषा संबंधी विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए |
उत्तर:- १. मुहावरों  का प्रयोग –किस्मत का रोना –निराशा का प्रतीक
२.सरल अभिव्यक्ति ,भाषा में प्रवाहमयता है ,किस्मत और परदा शब्दों की पुनरावृत्तियाँ     
        मोहक हैं|
      ३. हिंदी का घरेलू रूप
प्रश्न२:- ‘मेरा परदा  खोले हैं या अपना परदा खोले हैं ‘- की भाषिक विशेषता लिखिए |
उत्तर :-मुहावरे के प्रयोग द्वारा व्यंजनात्मक अभिव्यक्ति | परदा  खोलना – भेद खोलना ,सच्चाई बयान करना|
प्रश्न३:-‘हमहों या किस्मत हो हमारी ‘ –प्रयोग की विशेषता बताइए |
उत्तर :- हम और किस्मत दोनों शब्द एक ही व्यक्ति अर्थात फ़िराक के लिए प्रयुक्त हैं |हम और किस्मत में अभेद है यही विशेषता है |
फ़िराक गोरखपुरी
विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न१:- तारे आँखें झपकावें हैं –का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए |
उत्तर:- रात्रि का सन्नाटा भी कुछ कह रहा है।इसलिए तारे पलकें झपका रहे हैं। वियोग की स्थिति में प्रकृति भी संवाद करती प्रतीत होती है |
प्रश्न२:- ‘हम हों या किस्मत हो हमारी’ में किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है ?
उत्तर:- जीवन की विडंबना, किस्मत को रोना-मुहावरे के प्रयोग से, सटीक अभिव्यक्ति प्राप्त करती है।कवि जीवन से संतुष्ट नहीं है | भाग्य  से शिकायत  का भाव  इन पंक्तियों में झलकता है |
प्रश्न३:- प्रेम के किस नियम की अभिव्यक्ति कवि ने की है ?
उत्तर :-ईश्वर की प्राप्ति  सर्वस्व लुटा देने पर होती है। प्रेम के संसार का भी यही नियम है|कवि के शब्दों में ,” फ़ितरत का कायम है तवाज़ुन आलमे- हुस्नो –इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं |”
 १ भाव –साम्य:- कबीर -‘सीस उतारे भुई धरे तब मिलिहै करतार।‘-अर्थात -स्वयं को खो कर ही  प्रेम प्राप्ति की जा सकती है।
२ भाव साम्य- कबीर –जिन ढूँढा तिन पाइयाँ ,गहरे पानी पैठि|
मैं बपुरा बूडन डरा ,रहा किनारे बैठि|
प्रश्न४:- शराब की महफिल में शराबी  को देर रात  क्या बात याद आती है?
उत्तर :- शराब की महफिल में शराबी  को देर रात याद आती है कि आसमान में मनुष्य के पापों का लेखा-जोखा होता है। जैसे आधी रात के समय फरिश्ते लोगों के पापों के अध्याय खोलते हैं वैसे ही रात के समय शराब पीते हुए शायर को महबूबा की याद हो आती है मानो महबूबा फरिश्तों की तरह पाप स्थल के आस पास ही है।
प्रश्न५:-  सदके फ़िराक–––इन पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए |
उत्तर :-सदके फ़िराक–––इन पंक्तियों में फ़िराक कहते हैं कि उनकी शायरी में मीर की शायरी की उत्कृष्टता ध्वनित हो रही है।
प्रश्न६:-      पंखुड़ियों की नाज़ुक गिरह खोलना  क्या है?
 उत्तर :-पँखुड़ियों की नाजुक गिरह खोलना उनका धीरे -धीरे विकसित होना है।
  वय:संधि(किशोरी)नायिका के प्रस्फुटित होते सौंदर्य की ओर संकेत है |
प्रश्न७:-यों उड़ जाने को रंगो बू गुलशन में पर तौले हैभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :-कलियों की सुवास उड़ने के लिए मानो पर तौल रही हो।अर्थात खुशबू का झोंका रहरह कर उठता है।
प्रश्न८:- कवि द्वारा वर्णित रात्रि के दृश्य  का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :- रात्रि का सन्नाटा भी कुछ कह रहा है।इसलिए तारे पलकें झपका रहे हैं।लगता है कि प्रकृति का कण-कण कुछ कह  रहा  है |
प्रश्न९:- कवि अपने वैयक्तिक अनुभव किन पँक्तियों में व्यक्त कर रहा हैै?
जीवन की विडंबना,-‘किस्मत को रोना‘ मुहावरे के प्रयोग से, सटीक अभिव्यक्ति प्राप्त करती है।
“हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हम को रो लेवे हैं  हम किस्मत को रो ले हैं|”
प्रश्न१०:- शायर ने दुनिया के किस दस्तूर का वर्णन किया है?
उत्तर :-शायर ने दुनिया के इस दस्तूर का वर्णन किया है कि लोग दूसरों को बदनाम करते हैं परंतु वे नहीं जानते कि इस तरह वे अपनी दुष्ट प्रकृति को ही उद्घाटित करते हैं।
प्रश्न११:- प्रेम की फ़ितरत कवि ने किन शब्दों में अभिव्यक्त की है?
स्वयं को खो कर ही प्रेम की प्राप्ति की जा सकती है। ईश्वर की प्राप्ति सर्वस्व लुटा देने पर होती है। प्रेम के संसार का भी यही नियम है।
प्रश्न१२:- फ़िराक गोरखपुरी किस भाषा के कवि हैंै?
उत्तर :- उर्दू भाषा ।

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