वे आँखें
सुमित्रानंदन पंत
लहराते वे खेत दृगों मेंहुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हँसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तृन-तृन से!
आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा!
प्रश्न 1. किसानों को किससे बेदखल कर दिया गया?
उत्तरः- किसानों को उनके अपने खेतों से जमींदारों ने बेदखल कर दिया।
प्रश्न 2. किसान किसे देखकर फूला न समाता था?
उत्तरः- किसान अपनी हरी-भरी लहलहाती खेती को देखकर फूला न समाता था।
प्रश्न 3. जमींदार के कारिंदों ने भरी जवानी में किसे पीट-पीटकर मार डाला था?
उत्तरः- जमींदार के कारिंदों ने भरी जवानी में किसान के बेटे को पीट-पीटकर मार डाला था।
प्रश्न 4. कविता में किसान किसके शोषण की मार झेल रहे हैं?
उत्तरः- कविता में किसान जमींदारों के शोषण की मार झेल रहे हैं।
प्रश्न 5. ‘वे आँखें’ कविता में कवि के प्रतिपाद्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः- इस कविता में कवि ने युग-युग से शोषित किसान की स्वाधीनता के बाद के जीवन की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण किया है। विकास की तमाम घोषणाओं के बावजूद उसके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में कोई परिवर्तन देखने को नहीं मिलता। जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय किसान भुखमरी के कारण आत्महत्या करने के लिए विवश दिखाई पड़ रहा है।
प्रश्न - निम्नलिखित पद्यांश का भाव सौन्दर्य एवं शिल्प सौन्दर्य लिखिए |
अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रोदन!
उत्तरः- भाव-सौंदर्य-
कवि ने किसान की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण किया है। जिसकी आँखों में दूर-दूर तक अंधकार रूपी निराशा भरी हुई है। जिसके कारण उसकी आँखें रोती हुई भी चुप हैं।
शिल्प-सौंदर्य-
- अंधकार की गुहा सरीखी में उपमा अलंकार है।
- दारूण दैन्य दुख में अनुप्रास अलंकार है।
- भाषा सरल सुबोध शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।
- स्वच्छंद कविता में लय और तुक नहीं है।