पथिक
कवि- रामनरेश त्रिपाठी
निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा।कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा।
लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।।
निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है।
लहरों पर लहरों का आना सुंदर, अति सुंदर है।
कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी?
अनुभव करो हृदय से, हे अनुराग-भरी कल्याणी।।
प्रश्न 1. सागर के तट पर खड़ा कवि क्या देखता है?
उत्तरः- सागर के किनारे खड़ा कवि सूर्य का उदित होना देखता है।
प्रश्न 2. सूर्य के उदित रूप को देखकर कवि क्या कहता है?
उत्तरः- सूर्य के उदित रूप को देखकर कवि कहता है कि जब समुद्र के जल की सतह से सूर्य का अधूरा-सा प्रतिबिंब उभरता है तो ऐसा जान पड़ता है मानों लक्ष्मी के स्वर्ण मंदिर का कँगूरा हो।
प्रश्न 3. लक्ष्मी के स्वागत के लिए सागर ने क्या किया है?
उत्तरः- लक्ष्मी के स्वागत के लिए समुद्र ने सोने जैसी सड़क बिछा दी है।
प्रश्न 4. कवि प्रकृति के नूतन रूप को दिखाकर क्या प्रगट करना चाहता है?
उत्तरः- कवि प्रकृति के प्रतिक्षण बदलते नूतन रूप को दिखाकर बताना चाहता है कि प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य से बढ़कर कोई दूसरा सुख नहीं है।
प्रश्न 6. आत्म-प्रलय का क्या अर्थ है? पथिक पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तरः- आत्म-प्रलय का अर्थ है-स्वयं को भूल जाना। सागर तट पर खड़ा पथिक प्रकृति में प्रतिक्षण होने वाले परिवर्तनों के कारण भाव-विह्वल हो जाता है। जिसके कारण उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकलती है।
प्रश्न 7. पथिक किस पर बैठकर आकाश में विचरण करना चाहता है और क्यों?
उत्तरः- पथिक बादलों पर बैठकर समुद्र और आकाश के बीच में विचरण करना चाहता है क्योंकि वह नीले आकाश और नीले समुद्र के प्राकृतिक सौंदर्य को देखना चाहता है। उसे समुद्र और आकाश का प्राकृतिक सौंदर्य अपनी ओर आकर्षित करता है।
प्रश्न - निम्नलिखित पद्यांश का भाव सौन्दर्य एवं शिल्प सौन्दर्य लिखिए |