साये में धूप(गज़ल)
दुष्यंत कुमार
कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए।
प्रश्न 1. आज़ादी प्राप्त कर लेने के बाद क्या तय हुआ था?
उत्तरः- आज़ादी प्राप्त कर लेने के बाद यह तय हुआ था कि प्रत्येक घर को रोशनी देने के लिए सुख-सुविधा रूपी चिराग निश्चित रूप से प्रदान किए जाएँगे।
प्रश्न 2. कवि आज की कौन-सी स्थिति बताना चाहता है?
उत्तरः- कवि कहना चाहता है कि आज तो स्थिति यह बन गई है कि घर तो क्या, पूरे शहर को रोशनी देने के लिए एक भी दीपक नहीं है।
प्रश्न 3. कवि के अनुसार वृक्षों को किस लिए लगाया जाता है?
उत्तरः- कवि के अनुसार वृक्षों को इसलिए लगाया जाता है ताकि हमें धूप न लग सके, किन्तु दुर्भाग्यवश आज़ादी प्राप्ति के पश्चात भी सुख-सुकून प्राप्त नहीं हो पा रहा है।
प्रश्न 4. कवि ने किस पर कटाक्ष किया है और क्यों?
उत्तरः- कवि ने शासन व्यवस्था से जुड़े हुए लोगों पर कटाक्ष किया है, क्योंकि देशवासियों की सुख-सुविधा का दायित्व शासक वर्ग का होता है।
प्रश्न 5. ‘‘दरख्तों के साये में धूप लगती है’’ से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तरः- इसके द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि जिन उच्च पदस्थ व्यक्तियों और संस्थाओं से जनता को समस्याओं के समाधान होने की आशा थी वही अन्याय और अत्याचार का पर्याय बन गए हैं।
प्रश्न - निम्नलिखित पद्यांश का भाव सौन्दर्य एवं शिल्प सौन्दर्य लिखिए |
जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले,
मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।
उत्तरः- भाव-सौंदर्य-
कवि हमें अपने स्वाभिमान के साथ घर में और घर के बाहर दोनों स्थानों पर जीने की प्रेरणा प्रदान करता है।
शिल्प-सौंदर्य-
- गुलमोहर शब्द में यमक अलंकार है।
- उर्दू मिश्रित खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग हुआ है।
- गुलमोहर स्वाभिमान का प्रतीक है।
- शेर के अंतिम पद में तुक का प्रयोग हुआ है।