आओ, मिलकर बचाएँ
निर्मला पुतुल
और इस अविश्वास-भरे दौर मेंथोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है,
अब भी हमारे पास !
प्रश्न 1. कवयित्री किसे और कैसे बचाने की बात कहती है?
उत्तरः- कवयित्री सामाजिक-सांस्कृतिक और प्राकृतिक परिवेश को व्यक्ति के प्रयासों के द्वारा बचाना चाहती हैं।
प्रश्न 2. कवयित्री थोड़ी सी आशा देकर किसे जीवित करने की बात कर रही हैं?
उत्तरः- कवयित्री धूमिल पड़ती आदिवासी समाज की आशा की किरण को फिर से थोड़ी सी आशा देकर जीवित करने की बात कर रही हैं।
प्रश्न 3. प्रकृति के विनाश के कारण कौन विस्थापन के कगार पर पहुँच चुका है?
उत्तरः- प्रकृति के विनाश के कारण आदिवासी जातियाँ विस्थापन के कगार तक पहुँच चुकी हैं।
प्रश्न 4. आज के युग के बारे में कवयित्री कौन से विचार रखती हैं?
उत्तरः- कवयित्री का मानना है कि आज का युग ऐसा बन गया है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरे पर अविश्वास करने लगा है। हर कोई संदेह के घेरे में दिखने लगा है।
प्रश्न 5. भाषा में ‘झारखंडीपन’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तरः- संथाली आदिवासियों की मातृभाषा संथाली है। वे दैनिक व्यवहार में जिस संथाली भाषा का प्रयोग करते हैं, उसमें उनके राज्य झारखंड की पहचान झलकती है। उनकी भाषा से यह पता लग जाता है कि वे झारखंड राज्य के निवासी हैं।
प्रश्न - निम्नलिखित पद्यांश का भाव सौन्दर्य एवं शिल्प सौन्दर्य लिखिए |