पाठ योजना
कक्षा
– बारह्बीं
विषय- हिंदी
पाठ- सहर्ष स्वीकारा है
समयावधि
–
पाठ
का संक्षिप्त परिचय –
- कविता में
     जीवन के सुख– दुख‚ संघर्ष– अवसाद‚ उठा– पटक को
     समान रूप से स्वीकार करने की बात कही गई है।
 - स्नेह की
     प्रगाढ़ता अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर वियोग की कल्पना मात्र से त्रस्त हो उठती
     है। 
 - प्रेमालंबन
     अर्थात प्रियजन  पर यह भावपूर्ण
     निर्भरता‚ कवि के मन
     में विस्मृति की चाह उत्पन्न करती है।वह अपने प्रिय को पूर्णतया भूल जाना
     चाहता है |
 - वस्तुतः
     विस्मृति की चाह भी स्मृति का ही रूप है। यह विस्मृति भी स्मृतियों के
     धुंधलके से अछूती नहीं है।प्रिय की याद किसी न किसी रूप में बनी ही रहती है|
 - परंतु कवि
     दोनों ही परिस्थितियों को उस परम् सत्ता की परछाईं मानता है।इस परिस्थिति को
     खुशी –खुशी स्वीकार करता है |दुःख-सुख ,संघर्ष –अवसाद,उठा –पटक, मिलन-बिछोह
     को  समान भाव से स्वीकार करता
     है|प्रिय के सामने न  होने  पर भी उसके आस-पास होने का अहसास बना रहता
     है|
 - भावना की
     स्मृति विचार बनकर विश्व की गुत्थियां सुलझाने में मदद करती है| स्नेह में
     थोड़ी निस्संगता भी जरूरी है |अति किसी चीज की अच्छी नहीं |’वह’ यहाँ कोई भी
     हो सकता है दिवंगत माँ प्रिय या अन्य |कबीर के राम की तरह ,वर्ड्सवर्थ की
     मातृमना प्रकृति की तरह यह प्रेम सर्वव्यापी होना चाहता है |
 
“मुस्काता  चाँद ज्यों धरती पर रात भर
मुझ
पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!”
- छायावाद के
     प्रवर्तक  प्रसाद की लेखनी से यह स्वर
     इस प्रकार ध्वनित हुआ है –
 
“दुख की पिछली
रजनी बीच विकसता सुख का नवल प्रभात।
एक परदा यह झीना
नील छिपाए है जिसमें सुख गात।“
यह कविता ‘नई कविता’ में व्यक्त रागात्मकता को
आध्यात्मिकता के स्तर पर प्रस्तुत करती है।
क्रियाकलाप 
कविता का सस्वर वाचन, भावार्थ समझना, प्रश्नोत्तरी
 |
गृह कार्य – 
प्रश्न१:-कवि ने
किसे सहर्ष स्वीकारा है?
प्रश्न२:-कवि
को अपने अनुभव विशिष्ट एवं मौलिक क्यों लगते हैं?
प्रश्न३:-
“दिल
का झरना” का
सांकेतिक अर्थ स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न४:-
‘जितना
भी उँड़ेलता हूँ भर-भर फिर आता है “ का विरोधाभास स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न५:-
वह रमणीय उजाला क्या है जिसे कवि सहन नहीं कर पाता?
शिक्षक का नाम – 
पद – 
हस्ताक्षर
प्राचार्य 
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