पाठ योजना
कक्षा
– बारह्बीं
विषय- हिंदी
पाठ- आत्म परिचय
समयावधि
–01 अप्रैल से 30 अप्रैल 2017
पाठ
का संक्षिप्त परिचय –
१
स्वयं को जानना दुनिया को जानने से अधिक कठिन भी है और आवश्यक भी .
२ व्यक्ति के लिए समाज से निरपेक्ष एवं उदासीन
रहना न तो संभव है न ही उचित है .दुनिया अपने व्यंग्य बाणों ,शासन –प्रशासन से
चाहे कितना कष्ट दे ,पर दुनिया से कट कर
व्यक्ति अपनी पहचान नहीं बना सकता
.परिवेश ही व्यक्ति को बनाता है, ढालता है .
३
इस कविता में कवि ने समाज एवं परिवेश से प्रेम एवं संघर्ष का संबंध निभाते हुए
जीवन में सामंजस्य स्थापित करने की बात की
है .
४
छायावादोत्तर गीति काव्य में प्रीति-कलह
का यह विरोधाभास दिखाई देता है. व्यक्ति और समाज का संबंध इसी प्रकार प्रेम और
संघर्ष का है जिसमें कवि आलोचना की परवाह
न करते हुए संतुलन स्थापित करते हुए चलता है .
५ ‘नादान वहीं है हाय ,जहाँ पर दाना’ पंक्ति के
माध्यम से कवि सत्य की खोज के लिए ,अहंकार को त्याग कर नई सोच अपनाने पर जोर दे
रहा है
क्रियाकलाप
कविता का सस्वर वाचन, भावार्थ समझना, प्रश्नोत्तरी
|
गृह कार्य –
प्रश्न१:-कवि
कौन-कौन-सी स्थितियों में मस्त रहता है और क्यों?
प्रश्न२:-कवि
भव-सागर से तरने के लिए क्या उपाय अपना रहा है?
प्रश्न३:-’अपने
मन का गान’ का क्या आशय है?
प्रश्न४:-
’नादान वहीं हैं हाय जहाँ पर दाना’ का क्या आशय है?
प्रश्न५:-
’रोदन में राग’ कैसे संभव है?
प्रश्न६:-
”मैं फूट पड़ा तुम कहते छंद बनाना” का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
शिक्षक का नाम –
पद –
हस्ताक्षर
प्राचार्य