पाठ योजना
कक्षा
– बारह्बीं
विषय- हिंदी
पाठ- फ़िराक गोरखपुरी
समयावधि
–
पाठ
का संक्षिप्त परिचय –
उर्दू
शायरी की रिवायत के विपरीत फिराक गोरखपुरी के साहित्य में लोक जीवन एवं प्रकृति की
झलक मिलती है। सामाजिक संवेदना वैयक्तिक अनुभूति बन कर उनकी रचनाओं में व्यक्त हुई
है।जीवन का कठोर यथार्थ उनकी रचनाओं में स्थान पाता है।उन्होंने लोक भाषा के
प्रतीकों का प्रयोग किया है। लाक्षणिक प्रयोग उनकी भाषा की विशेषता है।फ़िराक की
रुबाईयों में घरेलू हिंदी का रूप दिखता है |
रुबाई
उर्दू और फ़ारसी का एक छंद या लेखन शैली है जिसमें चार पंक्तियाँ होती हैं |इसकी
पहली ,दूसरी और चौथी पंक्ति में तुक (काफ़िया)मिलाया जाता है तथा तीसरी पंक्ति
स्वच्छंद होती है |
“वो
रूपवती मुखड़े पे इक नर्म दमक”
“बच्चे
के घरोंदे में जलाती है दिए।“
“रक्षाबंधन
की सुबह रस की पुतली”
“बिजली
की तरह चमक रहे हैं लच्छे”
“भाई
के है बाँधती चमकती राखी।“- जैसे प्रयोग उनकी भाषा की सशक्तता के नमूने के तौर पर
देखे जा सकते हैं |
सार
रूबाइयाँ
रक्षाबंधन
एक मीठा बंधन है। रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बिजली के लच्छे हैं। सावन में
रक्षाबंधन आता है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है, घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का
बहन से होता है ।
गज़ल
पाठ
में फिराक की एक गज़ल भी शामिल है। रूबाइयों की तरह ही फिराक की गजलों में भी हिंदी
समाज और उर्दू शायरी की परंपरा भरपूर है। इसका अद्भुत नमूना है यह गज़ल। यह गज़ल कुछ
इस तरह बोलती है कि जिसमें दर्द भी है, एक शायर की ठसक भी है और साथ ही है काव्य-शिल्प की वह ऊँचाई जो गज़ल की विशेषता मानी जाती
है।
क्रियाकलाप
कविता का सस्वर वाचन, भावार्थ समझना, प्रश्नोत्तरी
|
गृह कार्य –
प्रश्न१:-
‘चाँद के टुकड़े’का प्रयोग किसके लिए हुआ है? और क्यों ?
प्रश्न२:-
गोद-भरी प्रयोग की विशेषता को स्पष्ट कीजिए |
प्रश्न३:-
लोका देना किसे कहते हैं ?
प्रश्न४:-
बच्चा माँ की गोद में कैसी प्रतिक्रिया करता है?
शिक्षक का नाम – धर्मेन्द्र भारद्वाज
पद – पी.जी.टी. हिंदी
हस्ताक्षर
प्राचार्य
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