नहीं खिलते अब रंग क्योंकि घोर दिए गए हैं इसमें अपाहिज़ मां के आंसू लाचार पिता की छटपटाहट बेवा बहन की चुप्पी छल-कपट का धतूरा नफ़रत के घेवर तो फिर कैसे चटक हो सकते हैं रंग प्रेम के नहीं जब तलक मां का आशीर्वाद पिता के चेहरे पर संतोष की व्याप्ति बेवा बहन की फटी हुई ज़िंदगी की साड़ियों में विश्वास की तुरपाई मजलूमों के अंधियार जीवन में उम्मीदों की एक लौ समाज व राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारियों के जल को घोरा जायेगा तब तक नहीं हो सकते हैं चटक रंग प्रेम के डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र प्रयागराज फूलपुर 7458994874
Principal Exam, मिलकर करते हैं तैयारी